Woh Sham Kuch Ajeeb Thi

वो शाम कुछ अजीब थी, ये शाम भी अजीब है

वो कल भी पास-पास थी, वो आज भी क़रीब है
वो शाम कुछ अजीब थी, ये शाम भी अजीब है
वो कल भी पास-पास थी, वो आज भी क़रीब है
वो शाम कुछ अजीब थी

झुकी हुई निगाह में कहीं मेरा ख़्याल था
दबी-दबी हँसी में इक हसीन सा गुलाल था
मैं सोचता था मेरा नाम गुनगुना रही है वो
मैं सोचता था मेरा नाम गुनगुना रही है वो
ना जाने क्यूँ लगा मुझे के मुस्कुरा रही है वो

वो शाम कुछ अजीब थी

मेरा ख़्याल है अभी झुकी हुई निगाह में
खिली हुई हँसी भी है दबी हुई सी चाह में
मैं जानता हूँ मेरा नाम गुनगुना रही है वो
मैं जानता हूँ मेरा नाम गुनगुना रही है वो
यही ख़्याल है मुझे के साथ आ रही है वो

वो शाम कुछ अजीब थी, ये शाम भी अजीब है
वो कल भी पास-पास थी, वो आज भी क़रीब है

वो शाम कुछ अजीब थी



Credits
Writer(s): Gulzar, Indraadip Dasgupta
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