Kahin Door Jab Din Dhal Jaye

कहीं दूर जब दिन ढल जाए
साँझ की दुल्हन बदन चुराए, चुपके से आए

मेरे ख़यालों के आँगन में
कोई सपनों के दीप जलाए, दीप जलाए
कहीं दूर जब दिन ढल जाए
साँझ की दुल्हन बदन चुराए, चुपके से आए

कभी यूँ हीं, जब हुईं बोझल साँसें
भर आईं बैठे-बैठे जब यूँ ही आँखें
कभी मचल के, प्यार से चल के
छुए कोई मुझे पर नज़र ना आए, नज़र ना आए

कहीं दूर जब दिन ढल जाए
साँझ की दुल्हन बदन चुराए, चुपके से आए

कहीं तो ये दिल कभी मिल नहीं पाते
कहीं पे निकल आए जन्मों के नाते
घनी थी उलझन, बैरी अपना मन
अपना ही होके सहे दर्द पराए, दर्द पराए

कहीं दूर जब दिन ढल जाए
साँझ की दुल्हन बदन चुराए, चुपके से आए

मेरे ख़यालों के आँगन में
कोई सपनों के दीप जलाए, दीप जलाए
कहीं दूर जब दिन ढल जाए
साँझ की दुल्हन बदन चुराए, चुपके से आए



Credits
Writer(s): Salil Choudhury, Yogesh
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