Purvaiya

समय के पन्नों पे लिख रही है ये ज़िंदगी जो कहानी
हैं कैसे मोड़ इसमें आने वाले, ये बात किसने है जानी

यही ज़िंदगी हँसाए, यही ज़िंदगी रुलाए
यही ज़िंदगी दे लोरी, यही ज़िंदगी जगाए
यही लाती है अँधेरे, यही रोशनी भी लाए
यही ज़ख्म-ज़ख्म कर दे, और यही मरहम लगाए

हर पल नया समाँ, नए ज़मीं, नए आसमाँ हैं
कभी तो है नर्म हवा है
और कभी गर्म आँधियाँ हैं, आँधियाँ हैं

(तेज़ चली रे पुरवैया) दिन में लाई रात रे
(तेज़ चली रे पुरवैया) बिखरे हैं फूल और पात रे
तो बस हैराँ-हैराँ सोचे इंसाँ, होनी है अब क्या बात रे
बस हैराँ-हैराँ सोचे इंसाँ, होनी है अब क्या बात रे
तेज़ चली रे पुरवैया

समय के पन्नों पे लिख रही है ये ज़िंदगी जो कहानी
हैं कैसे मोड़ इसमें आने वाले, ये बात किसने है जानी

वो आँखें जो कहीं नहीं उनके सपने मैंने हैं सँभाल के रखे
यादों ने सारी तस्वीरें और दिल ने दर्द हैं कमाल के रखे
अपनी धड़कनों में और साँसों में मैंने जिसको रखा है ज़िंदा
उसकी उम्मीदों को, उसके ख़्वाबों को कैसे होने दूँगा शर्मिंदा?

राहों में थे बिछे हुए दहके-दहके अंगारे
आकाश से पत्थर बरसे
ये सपने फिर भी ना हारे, फिर भी ना हारे

(तेज़ चली रे पुरवैया) दुनिया लगाए है घात रे
(तेज़ चली रे पुरवैया) दिल नहीं मानता मात रे
तो बस हैराँ-हैराँ सोचे इंसाँ, होनी है अब क्या बात रे
बस हैराँ-हैराँ सोचे इंसाँ, होनी है अब क्या बात रे
तेज़ चली रे पुरवैया

पुरवैया
तेज़ चली रे, तेज़ चली रे...
तेज़ चली पुरवैया



Credits
Writer(s): Javed Akhtar, Ehsaan, Shankar, Loy
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