Chaudhvin Ka Chand Ho

१४वीं का चाँद हो या आफ़ताब हो?
जो भी हो तुम ख़ुदा की क़सम, लाजवाब हो

१४वीं का चाँद हो या आफ़ताब हो?
जो भी हो तुम ख़ुदा की क़सम, लाजवाब हो
१४वीं का चाँद हो...

ज़ुल्फें हैं जैसे काँधों पे बादल झुके हुए
आँखें हैं जैसे मय के प्याले भरे हुए

मस्ती है जिसमें प्यार की, तुम वो शराब हो
१४वीं का चाँद हो...

चेहरा है जैसे झील में हँसता हुआ कँवल
या ज़िंदगी के साज़ पे छेड़ी हुई ग़ज़ल

जान-ए-बहार, तुम किसी शायर का ख़्वाब हो
१४वीं का चाँद हो...

होंठों पे खेलती हैं तबस्सुम की बिजलियाँ
सजदे तुम्हारी राह में करती है कहकशाँ

दुनिया-ए-हुस्न-ओ-इश्क़ का तुम ही शबाब हो
१४वीं का चाँद हो या आफ़ताब हो?
जो भी हो तुम ख़ुदा की क़सम, लाजवाब हो
१४वीं का चाँद हो...



Credits
Writer(s): Shankar Sharma Ravi, Shakeel Badayuni
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