Tumhen Dekhti Hoon To

तुम्हें देखती हूँ तो लगता है ऐसे
कि जैसे युगों से तुम्हें जानती हूँ
तुम्हें देखती हूँ तो लगता है ऐसे
कि जैसे युगों से तुम्हें जानती हूँ

अगर तुम हो सागर...
अगर तुम हो सागर, मैं प्यासी नदी हूँ
अगर तुम हो सावन, मैं जलती कली हूँ
पिया, तुम हो सागर

मुझे मेरी नींदें...
मुझे मेरी नींदें, मेरा चैन दे-दो
मुझे मेरे सपनों की एक रैन दे-दो ना

यही बात पहले...
यही बात पहले भी तुमसे कही थी
वही बात फिर से दोहरा रही हूँ
पिया, तुम हो सागर

तुम्हें छू के पल में बने धूल चंदन
तुम्हें छू के पल में बने धूल चंदन
तुम्हारी महक से महकने लगे तन
महकने लगे तन

मेरे पास आओ
मेरे पास आओ, गले से लगाओ
पिया, और तुमसे मैं क्या चाहती हूँ
तुम्हें देखती हूँ तो लगता है ऐसे
कि जैसे युगों से तुम्हें जानती हूँ
अगर तुम हो सागर...

ओ, मुरलिया समझकर...
मुरलिया समझकर मुझे तुम उठा लो
बस एक बार होंठों से अपने लगा लो ना
एक बार होंठों से अपने लगा लो ना

कोई सुर तो जागे...
कोई सुर तो जागे मेरी धड़कनों में
कि मैं अपनी सरगम से रूठी हुई हूँ
तुम्हें देखती हूँ तो लगता है ऐसे
कि जैसे युगों से तुम्हें जानती हूँ

अगर तुम हो सागर, मैं प्यासी नदी हूँ
अगर तुम हो सावन, मैं जलती कली हूँ
पिया, तुम हो सागर



Credits
Writer(s): Jaidev, Naqsh Lyallpuri
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