Zindagi Is Tarah - From "Murder"

ज़िंदगी इस तरह से लगने लगी
रंग उड़ जाए ज्यों दीवारों से
अब छुपाने को अपना कुछ ना रहा
ज़ख़म दिखने लगे दरारों से

अब तलक सिर्फ़ तुझ को देखा था
आज तू क्या है, ये भी जान लिया
आज जब ग़ौर से तुझे देखा
हम ग़लत थे कहीं, ये मान लिया
हम ग़लत थे कहीं, ये मान लिया

तेरी हर भूल में कहीं शायद
हम भी शामिल है गुनहगारों से
अब छुपाने को अपना कुछ ना रहा
ज़ख़म दिखने लगे दरारों से

आ, मेरे साथ मिलके हम फिर से
अपने ख़ाबों का घर बनाते हैं
जो भी बिखरा है, वो समेटते हैं
ढूँढ कर फिर ख़ुशी को लाते हैं
ढूँढ कर फिर ख़ुशी को लाते हैं

बोझ तो ज़िंदगी का कटता है
एक-दूजे के ही सहारों से

ज़िंदगी इस तरह से लगने लगी
रंग उड़ जाए ज्यों दीवारों से
अब छुपाने को अपना कुछ ना रहा
ज़ख़म दिखने लगे दरारों से



Credits
Writer(s): Sayeed Quadri, Anu Malik
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