Kya Khoya Kya Paya

ज़िंदगी के शोर, राजनीति की आपाधापी
रिश्ते-नातों की गलियों और क्या खोया, क्या पाया के बाज़ारों से आगे
सोच के रास्ते पर कहीं एक ऐसा नुक्कड़ आता है
जहाँ पहुँच कर इंसान एकाकी हो जाता है

तब जाग उठता है कवि
फिर शब्दों के रंगों से जीवन की अनोखी तस्वीरें बनती हैं
कविताएँ और गीत सपनों की तरह आते हैं
और काग़ज़ पर हमेशा के लिए अपने घर बना लेते हैं

Atal जी की ये कविताएँ ऐसे ही पल, ऐसे ही क्षणों में लिखी गईं हैं
जब सुनने वाले और सुनाने वाले में "तुम" और "मैं" की दीवारें टूट जाती हैं
दुनिया की सारी धड़कनें सिमट कर एक दिल में आ जाती हैं
और कवि के शब्द दुनिया के हर संवेदनशील इंसान के शब्द बन जाते हैं

क्या खोया, क्या पाया जग में
मिलते और बिछड़ते मग में
क्या खोया, क्या पाया जग में
मिलते और बिछड़ते मग में
मुझे किसी से नहीं शिकायत
यद्यपि छला गया पग-पग में

एक दृष्टि बीती पर डालें
यादों की पोटली टटोलें
एक दृष्टि बीती पर डालें
यादों की पोटली टटोलें

अपने ही मन से कुछ बोलें
अपने ही मन से कुछ बोलें

पृथ्वी लाखों वर्ष पुरानी
जीवन एक अनंत कहानी
पृथ्वी लाखों वर्ष पुरानी
जीवन एक अनंत कहानी
पर तन की अपनी सीमाएँ
यद्यपि सौ शरदों की वाणी

इतना काफ़ी है अंतिम दस्तक पर
ख़ुद दरवाज़ा खोलें
इतना काफ़ी है अंतिम दस्तक पर
ख़ुद दरवाज़ा खोलें

अपने ही मन से कुछ बोलें
अपने ही मन से कुछ बोलें

जन्म-मरण का अविरत फेरा
जीवन बंजारों का डेरा
जन्म-मरण का अविरत फेरा
जीवन बंजारों का डेरा
आज यहाँ, कल कहाँ कूच है
कौन जानता किधर सवेरा

अँधियारा, आकाश असीमित
प्राणों के पंखों को तोले
अँधियारा, आकाश असीमित
प्राणों के पंखों को तोले

अपने ही मन से कुछ बोलें
अपने ही मन से कुछ बोलें

अपने ही मन से कुछ बोलें
अपने ही मन से कुछ बोलें



Credits
Writer(s): Jagjit Singh Dhiman, Atal Bihari Vajpayee
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