Woh Aurat Hai Tu Mehbooba
मैं कैसे उसे पसंद करूँ?
मैं कैसे आँखें बंद करूँ?
वो औरत है, तू महबूबा
तू सब कुछ है, वो कुछ भी नहीं
वो औरत है, तू महबूबा
तू सब कुछ है, वो कुछ भी नहीं
तुम ऐसे उसे पसंद करो
मिल बैठो, बातें चंद करो
वो औरत है, मैं महबूबा
वो सब कुछ है, मैं कुछ भी नहीं, कुछ भी नहीं
वो औरत है, मैं महबूबा
वो सब कुछ है, मैं कुछ भी नहीं
मेरे लिए जो प्यार-मोहब्बत, उसके लिए पहेली
मेरे लिए जो प्यार-मोहब्बत, उसके लिए पहेली
चंपा कैसे भाए उसे? जिसके मन बसी चमेली
उसका दुख है मेरा दुख, मेरी सौतन मेरी सहेली
मेरे बिना अकेले तुम, वो तुम्हरे बिना अकेली
मत ये दीवार बुलंद करो
मिल बैठो, बातें चंद करो
वो औरत है, मैं महबूबा
वो सब कुछ है, मैं कुछ भी नहीं, कुछ भी नहीं
वो औरत है, मैं महबूबा
वो सब कुछ है, मैं कुछ भी नहीं
उसका नाम ना ले, मुझको नफ़रत है उसके नाम से
थक गए हो, बेचैन हो, तुम सो जाओ आराम से
ये रैन मिलन की रैना है, मिलकर भी दूर ही रहना है
तूने कितना तरसाया है, तुम ने कितना तड़पाया है
रूपा क्यूँ रूप छुपाती है? ऐसे में शर्म तो आती है
अब ये घूँघट उठ जाने दो, कुछ देर यूँ ही शरमाने दो
मुख ढाँप लिया क्यूँ हाथों से? डर लगता है इन बातों से
मैं दूँगा अपना नाम तुझे, तुम कर दोगे बदनाम मुझे
कुछ पाप नहीं है, प्यार है ये, एक शीशे की दीवार है ये
गिर जाने दो दीवारों को, छुपने दो चाँद-सितारों को
मैं कैसे आँखें बंद करूँ?
वो औरत है, तू महबूबा
तू सब कुछ है, वो कुछ भी नहीं
वो औरत है, तू महबूबा
तू सब कुछ है, वो कुछ भी नहीं
तुम ऐसे उसे पसंद करो
मिल बैठो, बातें चंद करो
वो औरत है, मैं महबूबा
वो सब कुछ है, मैं कुछ भी नहीं, कुछ भी नहीं
वो औरत है, मैं महबूबा
वो सब कुछ है, मैं कुछ भी नहीं
मेरे लिए जो प्यार-मोहब्बत, उसके लिए पहेली
मेरे लिए जो प्यार-मोहब्बत, उसके लिए पहेली
चंपा कैसे भाए उसे? जिसके मन बसी चमेली
उसका दुख है मेरा दुख, मेरी सौतन मेरी सहेली
मेरे बिना अकेले तुम, वो तुम्हरे बिना अकेली
मत ये दीवार बुलंद करो
मिल बैठो, बातें चंद करो
वो औरत है, मैं महबूबा
वो सब कुछ है, मैं कुछ भी नहीं, कुछ भी नहीं
वो औरत है, मैं महबूबा
वो सब कुछ है, मैं कुछ भी नहीं
उसका नाम ना ले, मुझको नफ़रत है उसके नाम से
थक गए हो, बेचैन हो, तुम सो जाओ आराम से
ये रैन मिलन की रैना है, मिलकर भी दूर ही रहना है
तूने कितना तरसाया है, तुम ने कितना तड़पाया है
रूपा क्यूँ रूप छुपाती है? ऐसे में शर्म तो आती है
अब ये घूँघट उठ जाने दो, कुछ देर यूँ ही शरमाने दो
मुख ढाँप लिया क्यूँ हाथों से? डर लगता है इन बातों से
मैं दूँगा अपना नाम तुझे, तुम कर दोगे बदनाम मुझे
कुछ पाप नहीं है, प्यार है ये, एक शीशे की दीवार है ये
गिर जाने दो दीवारों को, छुपने दो चाँद-सितारों को
Credits
Writer(s): Anand Bakshi, Kudalkar Laxmikant, Pyarelal Ramprasad Sharma
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