Kai Baar Yun Bhi Dekha Hai

कई बार यूँ भी देखा है
ये जो मन की सीमा रेखा है, मन तोड़ने लगता है
अंजानी प्यास के पीछे
अंजानी आस के पीछे मन दौड़ने लगता है

राहों में, राहों में, जीवन की राहों में
जो खिले हैं फूल-फूल मुस्कुरा के
कौन सा फूल चुरा के रख लूँ मन में सजा के?

कई बार यूँ भी देखा है
ये जो मन की सीमा रेखा है, मन तोड़ने लगता है
अंजानी प्यास के पीछे
अंजानी आस के पीछे मन दौड़ने लगता है

जानूँ ना, जानूँ ना, उलझन ये जानूँ ना
सुलझाऊँ कैसे? कुछ समझ ना पाऊँ
किसको मीत बनाऊँ? किसकी प्रीत भुलाऊँ?

कई बार यूँ भी देखा है
ये जो मन की सीमा रेखा है, मन तोड़ने लगता है
अंजानी प्यास के पीछे
अंजानी आस के पीछे मन दौड़ने लगता है



Credits
Writer(s): Yogesh, Salil Choudhury
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