Sham Aise Guzarta Hai Koi - Live

सुब्हान-अल्लाह
ख़ूबसूरत अश'आर, दिल-फ़रेब धुन और मशहूर कुन आवाज़
क्या समाँ बँध गया है
आपको और हमें तो लुत्फ़ आ ही रहा है
फ़नकार भी साज-ओ-आवाज़ की तिलस्म में खो कर रह गया है
लेकिन इतना भी नहीं
कि हमें अगली ग़ज़ल के बारे में कुछ ना बताए
सुनिए Bhupendra अब पेश कर रहे हैं
अपने पसंदीदा शायर Gulzar की एक ग़ज़ल

शाम ऐसे गुज़ारता है कोई
शाम ऐसे गुज़ारता है कोई
मैली चादर...
हो, मैली चादर उतारता है कोई
शाम ऐसे गुज़ारता है कोई

हो, देर से गूँजते हैं सन्नाटे
ओ, सन्नाटे, ओ, आ, आ
देर से गूँजते हैं सन्नाटे

तुमको शायद, शायद...
तुमको शायद पुकारता है कोई
तुमको शायद पुकारता है कोई
शाम ऐसे गुज़ारता है कोई

हम ही दिल को ग़लत नहीं समझे
हम ही दिल को ग़लत नहीं समझे
हम ही दिल को ग़लत नहीं समझे

आपको भी...
आ, आपको भी मुग़ालता है कोई
आपको भी मुग़ालता है कोई
शाम ऐसे गुज़ारता है कोई



Credits
Writer(s): Gulzar, Bhupender Singh
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