Pagli Hawa Badraya Din

पगली हवा बदराया दिन पागल मेरा मन जागे रे ।
जहाँ सभी अंजाने राहों के हैं ना ठिकाने वहीं मन अकारण धाए रे ॥
पीछे मुड़ कर अब क्यों रे जाएं कभी वो अपने द्वारे
जाए ना जाए ना दिवारें जीतने हो गिरें-टुटें ॥
बारिश नशा लाई सांझ की बेला किस बलराम की मैं हूँ चेला?
मेरे सपने घिर-नाचे मतवाले, सभी मतवाले ।
जिसकी चाह नहीं वही चाहूं मैं जो पाएं नहीं कहां पाऊं मैं
पाऊं न, पाऊं न, चाहे अनहोनी के द्वारे माथा पीटें ॥



Credits
Writer(s): Suresh Wadekar
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