Shamma Bujhne Ko Chali

शम्मा बुझने को चली, शम्मा बुझने को चली
शम्मा बुझने को चली, शम्मा बुझने को चली
है यही दर्द कि जल जाए पतंगा ना कहीं
शम्मा बुझने को चली, शम्मा बुझने को चली

उसने चाहा कि मेरा चाहने वाला तो रहे
उसने चाहा कि मेरा चाहने वाला तो रहे
मैं रहूँ या ना रहूँ, घर का उजाला तो रहे

अपने प्रीतम के लिए छोड़ दी प्रीतम की गली
शम्मा बुझने को चली, शम्मा बुझने को चली

भूलकर सब को बस एक अपनी वफ़ा साथ लिए
भूलकर सब को बस एक अपनी वफ़ा साथ लिए
अपने ही अश्कों में भीगी हुई एक रात लिए

ग़म के तूफ़ाँ में घिरी, ठोकरें खाती निकली
शम्मा बुझने को चली, शम्मा बुझने को चली

अपने-बेगाने छूटे, लख़्त-ए-जिगर छूट गया
अपने-बेगाने छूटे, लख़्त-ए-जिगर छूट गया
ग़म शोलों में छुपी ऐसी कि घर छूट गया

डूबने आई है पानी में नसीबों की जली
शम्मा बुझने को चली



Credits
Writer(s): Chitragupta, Majrooh Sultanpuri
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