Sheesha Ho Ya Dil Ho

शीशा हो या दिल हो
शीशा हो या दिल हो आख़िर टूट जाता है
टूट जाता है
टूट जाता है
टूट जाता है
लब तक आते-आते हाथों से साग़र छूट जाता है
छूट जाता है
छूट जाता है
शीशा हो या दिल हो आख़िर टूट जाता है

काफ़ी बस अरमान नहीं, कुछ मिलना आसान नहीं
दुनिया की मजबूरी है, फिर तक़दीर ज़रूरी है
ये दो दुश्मन हैं ऐसे, दोनों राज़ी हो कैसे
एक को मनाऊँ तो, दूजा रूठ जाता है
रूठ जाता है
रूठ जाता है
शीशा हो या दिल हो आख़िर टूट जाता है

बैठे थे किनारे पे, मौजों के इशारे पे
बैठे थे किनारे पे, मौजों के इशारे पे
हम खेले तूफ़ानों से, इस दिल के अरमानों से
हमको ये मालूम न था, कोई साथ नहीं देता
कोई साथ नहीं देता
माँझी छोड़ जाता है, साहील छूट जाता है
छूट जाता है
छूट जाता है

शीशा हो या दिल हो आख़िर टूट जाता है
टूट जाता है
टूट जाता है
टूट जाता है
शीशा हो या दिल हो

दुनिया एक तमाशा है, आशा और निराशा है
थोड़े फूल हैं, काँटे हैं, जो तकदीर ने बाँटे हैं
अपना-अपना हिस्सा है
अपना-अपना किस्सा है
कोई लुट जाता है
कोई लूट जाता है
लूट जाता है
लूट जाता है

शीशा हो या दिल हो आख़िर टूट जाता है
टूट जाता है
टूट जाता है
टूट जाता है
लब तक आते-आते हाथों से साग़र छूट जाता है
छूट जाता है
छूट जाता है
शीशा हो या दिल हो



Credits
Writer(s): Anand Bakshi, Kudalkar Laxmikant, Pyarelal Ramprasad Sharma
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