Aai Khudai

ऐ ख़ुदा-ए-पाक, ऐ रब करीम
कह के "बिस्मिल्लाहे, रहमान-ओ-रहीम"
कह के "बिस्मिल्लाहे, रहमान-ओ-रहीम"

सर झुकाते हैं तेरे दरबार में
हम तो ख़ादिम हैं तेरी सरकार में

है तू ही मालिक, तू ही बंदा नवाज़
जानता है तू हमारे दिल के राज़
क्या ज़मी, क्या आसमाँ, क्या सुब्ह-ओ-शाम

हैं सभी तेरे इशारों के गुलाम
तू जो चाहे ज़रहा भी हो आफ़ताब
जिसको चाहे उसको दे तू बेहिसाब

जिस पे हो तेरी इनायत की नज़र
है फ़रिश्तों से भी आला वो बशर
कोई मुफ़लिस है कि दौलतमंद है

तेरी रहमत का ज़रूरतमंद है
नेक है और कौन बद-इंसान है
इसकी तो बस तुझको ही पहचान है

क्या ख़बर जो यहाँ गुनाहगारों में हो
वो तेरी कुदरत के शहकारों में हो
हमको दिखला नेकियों का रास्ता

तुझको है अपने नबी का वास्ता
दिल को दो दुनिया की दौलत बक्श दे
यानी इंसाँ की मोहब्बत बक्श दे

ऐ ख़ुदा-ए-पाक, ऐ रब करीम
कह के "बिस्मिल्लाहे, रहमान-ओ-रहीम"
कह के "बिस्मिल्लाहे, रहमान-ओ-रहीम"



Credits
Writer(s): Hassan Kamaal, Ravi
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