Ek Tha Gul Aur Ek Thi Bulbul

१ था गुल और १ थी बुलबुल
१ था गुल और १ थी बुलबुल, दोनों चमन में रहते थे
है ये कहानी बिलकुल सच्ची, मेरे नाना कहते थे
१ था गुल और १ थी बुलबुल

बुलबुल कुछ ऐसे गाती थी
ऐसे गाती थी, ऐसे गाती थी
कैसे गाती थी?
बुलबुल कुछ ऐसे गाती थी जैसे तुम बातें करती हो
वो गुल ऐसे शरमाता था
ऐसे शरमाता था जैसे, ऐसे शरमाता था जैसे
कैसे शरमाता था?
वो गुल ऐसे शरमाता था जैसे मैं घबरा जाता हूँ

बुलबुल को मालूम नहीं था गुल ऐसे क्यो शर्माता था
वो क्या जाने उसका नग्म़ा, गुल के दिल को धडकाता था
दिल के भेद ना आते लब पे, ये दिल में ही रहते थे
१ था गुल और १ थी बुलबुल

फिर क्या हुआ?

लेकिन आखिर दिल की बातें ऐसे कितने दिन छूपती हैं
ये वो कलियाँ हैं जो १ दिन बस काँटे बन के चुभती हैं
१ दिन जान लिया बुलबुल ने वो गुल उस का दीवाना है
तुम को पसंद आया हो तो बोलूँ फिर आगे जो अफसाना है
हम्म, बोलो ना, चुप क्यूँ हो गए?
१ दूजे का हो जाने पर, वो दोनो मजबूर हुए
उन दोनो के प्यार के किस्से गुलशन में मशहूर हुए
साथ जिएंगे, साथ मरेंगे, वो दोनो ये कहते थे
१ था गुल और १ थी बुलबुल

फिर क्या हुआ?

फिर १ दिन की बात सुनाऊँ, १ सय्याद चमन में आया
ले गया वो बुलबुल को पकड के और दीवाना गुल मुरझाया
और दीवाना गुल मुरझाया
शायर लोग बयां करते हैं ऐसे उन की जुदाई की बातें
गाते ते ये गीत वो दोनो, सैंया बिना नहीं कटती रातें
सैंया बिना नहीं कटती रातें
मस्त बहारों का मौसम था आँख से आँसू बहते थे
१ था गुल और १ थी बुलबुल

आती थी आवाज़ हमेशा ये झिलमील-झिलमील तारोँ से
जिसका नाम मोहब्बत है वो कब रूकती है दिवारों से
१ दिन आह गुल-ओ-बुलबुल की उस पिंजड़े से जा टकराई
टूटा पिंजड़ा, छूटा कैदी, देता रहा सैय्याद दुहाई
रोक सके ना उस को मिलके, सारा जमाना, सारी खुदाई
गुल साजन को गीत सुनाने, बुलबुल बाग में वापस आई

राजा बोहोत अच्छी कहानी थी
याद सदा रखना ये कहानी, चाहे जीना, चाहे मरना
तुम भी किसी से प्यार करो तो, प्यार गुल-ओ-बुलबुल सा करना
प्यार गुल-ओ-बुलबुल सा करना, प्यार गुल-ओ-बुलबुल सा करना



Credits
Writer(s): Anand Bakshi, Anandji V Shah, Kalyanji Virji Shah
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