Chalo Kahin Aur Chalte Hain

चलो कहीं और चलते है
चलो कहीं और चलते है
सुनते है यहाँ छुपके बातें, लोग जलते हैं
चलो कहीं और चलते है

हाँ ये जगह खूब है
लेकिन कितनी धूप है
पेड़ के निचे बैठेंगे
आ, नहीं दिवार के पीछे बैठे
दीवारों के भी कान होते है
ओ हो, आप यूँही बदगुमा होते है

लो ये टोफ़ी खाओगे
कब तक यूँ तरसाओगे
क्या दिल बेक़रार है
मुश्किल इंतज़ार है

मेरा भी ये हाल है
शादी में एक साल है
साल में कितने दिन है
जीतने है तेरे बिन है
यही बातें सोच के तो दिन रात ढलते है
चलो कहीं और चलते है

ऐसे तुम क्यों खो गए
हम भी दीवाने हो गए
हाँ ये दीवानापन छोडो
देखो भई दिल न तोड़ो

दिन रात तेरी याद आती है
नींद यहाँ किसे आती है
रुत का क्या इशारा है
मौसम बड़ा प्यारा है

फिर कब मिलने आओगे
जब भी तुम बुलाओगे
कल का वादा कर जाओ
अच्छा अब तुम घर जाओ

जितना वक़्त भी अपना था
कितना सुन्दर सपना था
सपने कभी-कभी झुटे निकलते है

चलो कहीं और चलते है
चलो कहीं और चलते है



Credits
Writer(s): Anand Bakshi, Rahul Dev Burman
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