Hazaar Rahen

हज़ार राहें मुड़ के देखी
कहीं से कोई सदा ना आई
बड़ी वफ़ा से निभाई तुमने
हमारी थोड़ी सी बेवफ़ाई

जहाँ से तुम मोड़ मुड़ गये थे
जहाँ से तुम मोड़ मुड़ गये थे
ये मोड़ अब भी वही पड़े हैं

हम अपने पैरों में जाने कितने
हम अपने पैरों में जाने कितने
भँवर लपेटे हुए खड़े हैं

बड़ी वफ़ा से निभाई तुमने
हमारी थोड़ी सी बेवफ़ाई

कहीं किसी रोज़ यूँ भी होता
कहीं किसी रोज़ यूँ भी होता
हमारी हालत तुम्हारी होती

जो रातें हमने गुज़ारी मर के
जो रातें हमने गुज़ारी मर के
वो रात तुमने गुज़ारी होती

बड़ी वफ़ा से निभाई तुमने
हमारी थोड़ी सी बेवफ़ाई

उन्हें ये ज़िद थी कि हम बुलाते
हमें ये उम्मीद वो पुकारें

है नाम होंठों में अब भी लेकिन
आवाज़ में पड़ गईं दरारें

हज़ार राहें मुड़के देखी
कहीं से कोई सदा ना आई

बड़ी वफ़ा से निभाई तुमने
हमारी थोड़ी सी बेवफ़ाई
हमारी थोड़ी सी बेवफ़ाई



Credits
Writer(s): Gulzar, Mohammed Zahur Khayyam
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