Tumul Kolahal Kalah Mein

तुमुल कोलाहल कलह में
मैं ह्रदय की बात रे मन
तुमुल कोलाहल कलह में
मैं ह्रदय की बात रे, मन

विकल होकर नित्य चंचल
विकल होकर नित्य चंचल
खोजती जब नींद के पल
विकल होकर नित्य चंचल
खोजती जब नींद के पल

चेतना थक सी रही, चेतना
चेतना थक सी रही तब
मैं मलय की बात रे, मन
मैं मलय की बात रे, मन

तुमुल कोलाहल कलह में
मैं ह्रदय की बात रे, मन

चिर विषाद-विलीन मन की
इस व्यथा के तिमिर-वन की
चिर विषाद-विलीन मन की
इस व्यथा के तिमिर-वन की

मैं उषा-सी ज्योति-रेखा, मैं उषा-सी
मैं उषा-सी ज्योति-रेखा
कुसुम-विकसित प्रात रे, मन
कुसुम-विकसित प्रात रे, मन

तुमुल कोलाहल कलह में
मैं ह्रदय की बात रे, मन

जहाँ मरु-ज्वाला धधकती
जहाँ मरु-ज्वाला धधकती
चातकी कन को तरसती
जहाँ मरु-ज्वाला धधकती
चातकी कन को तरसती

उन्हीं जीवन घाटियों की, उन्हीं जीवन
उन्हीं जीवन घाटियों की
मैं सरस बरसात रे, मन
मैं सरस बरसात रे, मन

तुमुल कोलाहल कलह में
मैं ह्रदय की बात रे, मन

पवन की प्राचीर में रुक
जला जीवन जी रहा झुक
पवन की प्राचीर में रुक
जला जीवन जी रहा झुक

इस झुलसते विश्व दिन की, इस झुलसते
इस झुलसते विश्व दिन की
मैं कुसुम-ऋतु-रात रे, मन
मैं कुसुम-ऋतु-रात रे, मन

तुमुल कोलाहल कलह में
मैं ह्रदय की बात रे, मन
तुमुल कोलाहल कलह में
मैं ह्रदय की बात रे, मन



Credits
Writer(s): Jaidev, Ratnashankar Prasad, Jaishankar Prasad
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