Apni Ulfat Pe Zamane Ka

अपनी उल्फ़त पे ज़माने का ना पहरा होता
तो कितना अच्छा होता, तो कितना अच्छा होता
प्यार की रात का कोई ना सवेरा होता
तो कितना अच्छा होता, तो कितना अच्छा होता

अपनी उल्फ़त पे ज़माने का ना पहरा होता
तो कितना अच्छा होता, तो कितना अच्छा होता

पास रह कर भी बहुत दूर, बहुत दूर रहे
एक बंधन में बंधे, फिर भी तो मजबूर रहे
पास रह कर भी बहुत दूर, बहुत दूर रहे
एक बंधन में बंधे, फिर भी तो मजबूर रहे

मेरी राहों में ना उलझन का अँधेरा होता
तो कितना अच्छा होता, तो कितना अच्छा होता

दिल मिले, आँख मिली, प्यार ना मिलने पाए
बाग़बाँ कहता है, दो फूल ना खिलने पाए
दिल मिले, आँख मिली, प्यार ना मिलने पाए
बाग़बाँ कहता है, दो फूल ना खिलने पाए

अपनी मंज़िल को जो काँटों ने ना घेरा होता
तो कितना अच्छा होता, तो कितना अच्छा होता

अजब सुलगती हुई लकड़ियाँ हैं जग वाले
मिलें तो आग उगलते, फ़टें तो धुआँ करें
अजब सुलगती हुई लकड़ियाँ हैं जग वाले
मिलें तो आग उगलते, फ़टें तो धुआँ करें

अपनी दुनिया में भी सुख-चैन का फेरा होता
तो कितना अच्छा होता, तो कितना अच्छा होता
अपनी उल्फ़त पे ज़माने का ना पहरा होता
तो कितना अच्छा होता, तो कितना अच्छा होता



Credits
Writer(s): Jaikshan Shankar, Jaipuri Hasrat
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