Kitni Akeli Kitni Tanha

कितनी अकेली...
कितनी अकेली, कितनी तन्हा सी लगी
उनसे मिल के मैं आज
कितनी अकेली, कितनी तन्हा सी लगी
उनसे मिल के मैं आज
कितनी अकेली...

इस तरह खुले नैना, आए वो मेरे आगे
इस तरह खुले नैना, आए वो मेरे आगे
जिस तरह किसी गहरी नींद से कोई जागे

अब जहान से दूर हूँ, कहीं बैठी मैं अलबेली
कितनी अकेली...
हाँ, कितनी अकेली, कितनी तन्हा सी लगी
उनसे मिल के मैं आज
कितनी अकेली...

काश, वो मेरे बन के पास यूँ कभी आते
काश, वो मेरे बन के पास यूँ कभी आते
खुलते द्वार बाँहों के, तन दिए से जल जाते

प्यार के बिना हैं ये मन मेरा जैसे सूनी हवेली
कितनी अकेली...
हाँ, कितनी अकेली, कितनी तन्हा सी लगी
उनसे मिल के मैं आज
कितनी अकेली, कितनी तन्हा सी लगी
उनसे मिल के मैं आज
कितनी अकेली...



Credits
Writer(s): Majrooh Sultanpuri, S.d. Burman
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