Kahe Ko Byahi Videsh Re Babul

काहे को ब्याही विदेश?
काहे को ब्याही विदेश रे बाबुल?
काहे को ब्याही विदेश?

ऐसी ना थी मोरी मैके की गलियाँ
ऐसी ना थी...
ऐसी ना थी मोरी मैके की गलियाँ
जैसा पिया जी का देस रे बाबुल

काहे को ब्याही विदेश?
हो, काहे को ब्याही विदेश रे बाबुल?
काहे को ब्याही विदेश?

पड़ गए कोमल पैरों में छाले
ओ, पड़ गए कोमल पैरों में छाले
लग गए होंठों पे चुप के ताले

लाखों आने-जाने वाले एक के हाथ
भेजा ना मेरे भैयों ने संदेश, रे बाबुल

काहे को ब्याही विदेश?
हो, काहे को ब्याही विदेश रे बाबुल?
काहे को ब्याही विदेश?

लिख-लिख फाड़ी कितनी पत्तियाँ
ओ, लिख-लिख फाड़ी कितनी पत्तियाँ
लिख ना पाऊँ जी की बतियाँ
छोटे दिन और लंबी रतियाँ

याद करो तारे महले दो महले
लागे जिया पे ठेस, रे बाबुल

काहे को ब्याही विदेश?
हो, काहे को ब्याही विदेश रे बाबुल?
काहे को ब्याही विदेश?

जीवन सपना निकला झूठा
ओ, जीवन सपना निकला झूठा
मेरा मन मुझसे भी रूठा
मुख दर्शन में दर्पण टूटा

अपना पाप ना पहचानूँ
बदला जीवन ने ऐसा भेस, रे बाबुल

काहे को ब्याही विदेश?
काहे को ब्याही विदेश रे बाबुल?
काहे को ब्याही विदेश?



Credits
Writer(s): Anand Bakshi, Kudalkar Laxmikant, Pyarelal Ramprasad Sharma
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