Dikhai Diye Yun, Pt. 2

कौन है जो एक साए की तरह
मेरे दिल को छूता हुआ गुज़र जाता है?
कभी पास से, कभी दूर से
एक आवाज़, एक नग़मा
एक गीत बनकर रग-रग में उतर जाता है
कभी पास से, कभी दूर से

कौन है जो मुझे अपनी तनहाई का एहसास दिला जाता है?
एक ख़ालीपन, सूनापन छोड़ जाता है
मैं उसे देखना चाहती हूँ, जानना चाहती हूँ
उँगलियों से उसके चेहरे को छूना चाहती हूँ

कौन है जो पास रहकर भी मुझसे दूर है?
क़दमों की आहट सुनती हूँ, पलटती हूँ
उसे देखती हूँ, तस्वीर बन जाती हूँ
ख़ुद को भूल जाती हूँ, बेख़ुद हो जाती हूँ

दिखाई दिए यूँ कि बेख़ुद किया
दिखाई दिए यूँ कि बेख़ुद किया
हमें आप से भी जुदा कर चले
दिखाई दिए यूँ कि बेख़ुद किया
दिखाई दिए यूँ...

जबीं सजदा करते ही करते गई
जबीं सजदा करते ही करते गई
हक़-ए-बंदगी हम अदा कर चले

दिखाई दिए यूँ कि बेख़ुद किया
हमें आप से भी जुदा कर चले
दिखाई दिए यूँ...

परस्तिश की याँ तक कि ऐ बुत तुझे
परस्तिश की याँ तक कि ऐ बुत तुझे
नज़र में सभों की ख़ुदा कर चले

दिखाई दिए यूँ कि बेख़ुद किया
हमें आप से भी जुदा कर चले
दिखाई दिए यूँ...

बहुत आरज़ू थी गली की तेरी
बहुत आरज़ू थी गली की तेरी
सो याँ से लहू में नहा कर चले

दिखाई दिए यूँ कि बेख़ुद किया
हमें आप से भी जुदा कर चले
दिखाई दिए यूँ कि बेख़ुद किया
दिखाई दिए यूँ...



Credits
Writer(s): Meer Taqi Meer, N/a Khaiyyaam
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