Chadar Hogai Bahut Purani

चादर हो गई बहुत पुरानी
चादर हो गई बहुत पुरानी
अब तो सोच-समझ, अभिमानी
चादर हो गई बहुत पुरानी

अजब जुलाहा चादर बीनी
सूत करम की तानी
अजब जुलाहा चादर बीनी
सूत करम की तानी

सुरति-निरति का भरना दीना
तब सबके मन मानी
चादर हो गई बहुत पुरानी

शंका मानी जानू जिय अपने
है ये बस्तु बिरानी
कहे कबीर यही, राखि जतन से...
राखि जतन से...

कहे कबीर यही, राखि जतन से
ये फिर हाथ ना आनी
चादर हो गई बहुत पुरानी
चादर हो गई बहुत पुरानी



Credits
Writer(s): Kabir Das, Bhupender Singh
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