Tujhe Milne Ki Saza Denge

ज़िंदगी से बड़ी सज़ा ही नहीं
ज़िंदगी से बड़ी सज़ा ही नहीं
और क्या जुर्म है, पता ही नहीं
ज़िंदगी से बड़ी सज़ा ही नहीं

इतने हिस्सों में बँट गया हूँ मैं
इतने हिस्सों में बँट गया हूँ मैं
इतने हिस्सों में बँट गया हूँ मैं

मेरे हिस्से में कुछ बचा ही नहीं
मेरे हिस्से में कुछ बचा ही नहीं
ज़िंदगी से बड़ी सज़ा ही नहीं

सच घटे या बढ़े तो सच ना रहे
सच घटे या बढ़े तो सच ना रहे
सच घटे या बढ़े तो सच ना रहे

झूठ की कोई इंतिहा ही नहीं
झूठ की कोई इंतिहा ही नहीं

जड़ दो चाँदी में, चाहे सोने में
जड़ दो चाँदी में, चाहे सोने में
जड़ दो चाँदी में, चाहे सोने में

आईना झूठ बोलता ही नहीं
आईना झूठ बोलता ही नहीं
ज़िंदगी से बड़ी सज़ा ही नहीं
और क्या जुर्म है, पता ही नहीं
ज़िंदगी से बड़ी सज़ा ही नहीं



Credits
Writer(s): Danish Aligarhi, Jagjit Singh
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