Khudara

فترحمنا، فتب لنا وعلى صراط مستقيم
فترحمنا، فتب لنا وعلى صراط مستقيم
فترحمنا، فتب لنا وعلى صراط مستقيم
मुझे बक्श दे, मुझे बक्श दे या मेरे الغفور الرحيم

मैं रेज़ा-रेज़ा बिखर रहाँ हूँ, सँभाल मुझे
अँधेरा मुझे में उतार रहाँ है, उजाला मुझे
मैं रेज़ा-रेज़ा बिखर रहाँ हूँ, सँभाल मुझे
अँधेरा मुझे में उतार रहाँ है, उजाला मुझे

मैं खुद से बिछड़ गया हूँ जैसे आग से धुआँ
ना ज़मीन, ना आसमाँ है, ये मैं आ गया कहाँ?

मुझे मेरा पता दे ख़ुदारा
कोई रास्ता बता दे ख़ुदारा
मुझे मेरा पता दे ख़ुदारा
कोई रास्ता बता दे ख़ुदारा

فترحمنا، فتب لنا وعلى صراط مستقيم

आया कहाँ से इतना ज़हर लहू में
गंगा का पानी बहता था मेरे वज़ू में
जो दिखता है वो मेरा वजूद नहीं (वजूद नहीं)
आज मैं अपने आप में क्यूँ मौजूद नहीं? (मौजूद नहीं?)

वो नहीं था जब हमारा तो उसका ग़म हैं क्यूँ?
दिल जल रहाँ है लेकिन ये आँख नम हैं क्यूँ?

मुझे मेरा पता दे ख़ुदारा
कोई रास्ता बता दे ख़ुदारा
मुझे मेरा पता दे ख़ुदारा
कोई रास्ता बता दे ख़ुदारा

ले-ले मेरी साँसें, मुझको मर जाने दे
जाने कब से बेघर हूँ, अब घर आने दे
काबे तक तुझे मैं सोचूँ, तेरा ख्याल करूँ (ख्याल करूँ)
सामने आ मैं तुझसे एक सवाल करूँ (सवाल करूँ)

मैं गलत हूँ या के दुनिया या कहीं गलत है तू
मुझे दे जवाब मौला, मैं हूँ तेरे रूबरू...

मुझे मेरा पता दे ख़ुदारा
कोई रास्ता बता दे ख़ुदारा
मुझे मेरा पता दे ख़ुदारा
कोई रास्ता बता दे ख़ुदारा

فترحمنا، فتب لنا وعلى صراط مستقيم
فترحمنا، فتب لنا وعلى صراط مستقيم



Credits
Writer(s): Prasad Prabhakar Sashte, Shakeel Azmi
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