In Mast Nigahon Se

हो... ओ... हो...
इन मस्त निगाहों से, मुझको ना पिला देना
इन मस्त निगाहों से, मुझको ना पिला देना
तुम एक मुसलमा को, काफ़िर ना बना देना

हो, हो, हो, मोहब्बत में निगाहों से
मोहब्बत में निगाहों से ज़ुबाँ का काम लेते हो
किसी की बात करते हो, किसी का नाम लेते हो

शहंशाह हो, के मल्लिका हो, सलामी हम नहीं करते
शहंशाह हो, के मल्लिका हो, सलामी हम नहीं करते
हसीना हो के बोतल हो, ओ ओ ओ...
हसीना हो के बोतल हो, ग़ुलामी हम नहीं करते

ऐ हज़ूर जो कहना है, कहो खुलके
मैंने कहा, जो कहना है कहो खुलके, बहाने क्यूँ बनाते हो
हसीनों की गली में, तुम भी अपना सर झुकाते हो

सर जिसपे ना झुक जाए
अब मैं जो कहने जा रहा हूँ
ना किसी ने कहा है, ना किसी ने सुना है
मुलाएजा फ़रमाइए हुज़ूर (इरशाद इरशाद इरशाद...)
सर जिसपे ना झुक जाए, उसे दर नहीं कहते
सर जिसपे ना झुक जाए, उसे दर नहीं कहते
हर दर पे जो झुक जाए हो ओ ओ...
हर दर पे जो झुक जाए, उसे सर नहीं कहते
सर जिसपे ना झुक जाए, उसे दर नहीं कहते

ओ साहेब, देखकर हमको हँसी क्यूँ आ गई तुमको
ओ साहेब, देखकर हमको हँसी क्यूँ आ गई तुमको
हमारा नाम हीरो हैं, हो ओ ओ ओ...
हमारा नाम हीरो हैं, हमें जोकर नहीं कहते

ओ सर जिसपे ना झुक जाए उसे दर नहीं कहते

ओ..., वो और हैं पीते ही खुल जाते हैं मुँह जिनके
वो और हैं पीते ही खुल जाते हैं मुँह जिनके
पी जाते हैं हम सब कुछ ओ ओ ओ...
पी जाते हैं हम सब कुछ
कुछ पी कर नहीं कहते
सर जिसपे ना झुक जाए, उसे दर नहीं कहते
ओ, सर जिसपे ना झुक जाए, उसे दर नहीं कहते
हर दर पे जो झुक जाए, उसे सर नहीं कहते
सर जिसपे ना झुक जाए, उसे दर नहीं कहते
इन मस्त निगाहों से, मुझको ना पिला देना
इन मस्त निगाहों से, मुझको ना पिला देना
तुम एक मुसलमा को, काफ़िर ना बना देना
सर जिसपे ना झुक जाए, उसे दर नहीं कहते
सर जिसपे ना झुक जाए, उसे दर नहीं कहते
हर दर पे जो झुक जाए, उसे सर नहीं कहते
सर जिसपे ना झुक जाए, उसे दर नहीं कहते
सर जिसपे ना झुक जाए, उसे दर नहीं कहते



Credits
Writer(s): Muhammad Irfan Akram
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