Nagri Nagri

हो नगरी नगरी फिरा मुसाफ़िर घर का रस्ता भूल गया

क्या है तेरा क्या है मेरा अपना पराया भूल गया

हो नगरी नगरी फिरा मुसाफ़िर घर का रस्ता भूल गया

क्या भूला कैसे भूला क्यूँ पूछते हो बस यूँ समझो
कारन दोश नहीं है कोई भूला भाला भूल गया
हो नगरी नगरी फिरा मुसाफ़िर घर का रस्ता भूल गया

कैसे दिन थे कैसी रातें कैसी बातें घातें थीं

कैसे दिन थे कैसी रातें कैसी बातें घातें थीं
मन बालक है पहले प्यार का सुंदर सपना भूल गया
अँधियारे से एक किरन ने झाँक के देखा शरमाई
धुँदली छब तो याद रही कैसा था चेहरा भूल गया
याद के फेर में आ कर दिल पर ऐसी कारी चोट लगी
दुख में सुख है सुख में दुख है भेद ये न्यारा भूल गया
एक नज़र की एक ही पल की बात है डोरी साँसों की
एक नज़र का नूर मिटा जब इक पल बीता भूल गया
सूझ-बूझ की बात नहीं है मन-मौजी है मस्ताना
लहर लहर से जा सर पटका सागर गहरा भूल गया
नगरी नगरी फिरा मुसाफ़िर घर का रस्ता भूल गया

क्या भूला कैसे भूला क्यूँ पूछते हो बस यूँ समझो
कारन दोश नहीं है कोई भूला भाला भूल गया
हो नगरी नगरी फिरा मुसाफ़िर घर का रस्ता भूल गया



Credits
Writer(s): Sneha Subhash Khanwalkar, Meera Ji
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