Masoom Sa

पालने में चाँद उतरा खुबसूरत ख्वाब जैसा
गोद में उसको उठाता तो मुझे लगता था वैसा
सारा जहान मेरा हुआ...
सारा जहान मेरा हुआ, सुबह की वो पहली दुआ या फूल रेशम का

मासूम सा, मासूम सा
मेरे आस-पास था मासूम सा
मेरे आस-पास था मासूम सा
हो, मासूम सा

एक कमरा था मगर सारा ज़माना था वहाँ
खेल भी थे और ख़ुशी थी, दोस्ताना था वहाँ
चार दीवारों में रहती थी हज़ारों मस्तियाँ
थे वही पतवार भी, सागर भी थे और कश्तियाँ
थे वही पतवार भी, सागर भी थे और कश्तियाँ
मेरी तो वो पहचान था...
मेरी तो वो पहचान था, या यूँ कहो की जान था वो चाँद आँगन का

मासूम सा, मासूम सा
मेरे आस-पास था मासूम सा
मेरे आस-पास था मासूम सा
हो, मासूम सा

मेरी ऊँगली को पकड़ वो चाँद चलता शहर में
ज़िंदगी की बेरहम-सी धूप में दोपहर में
मैं सुनाता था उसे अफ़साने रंगीं शाम के
ताके वो चलता रहे, चलता रहे और ना थके
ताके वो चलता रहे, चलता रहे और ना थके
ना मंज़िलों का था पता...
ना मंज़िलों का था पता, थी ज़िंदगी इक रास्ता, वो साथ हर पल था

मासूम सा, मासूम सा
मेरे आस-पास था मासूम सा
मेरे आस-पास था मासूम सा
हो, मासूम सा



Credits
Writer(s): Irshad Kamil, Sunny Bawra-inder Bawra
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