Paaon Bhaari

बुढ़ा बनकर दिन गीनता था
उखड़ा, उखड़ा सा रहता था
इसकी उम्मीदों से हटकर
कली खिली है

जो उठी थी, वो गुथी अब खुलने वाली है
लगता है उम्मीदों के पाओं भारी है
उम्मीदों से बढ़कर किस्से अभी जारी है
लगता है उम्मीदों के पाओं भारी है
उम्मीदों से बढ़कर किस्से अभी जारी है

आशा की पुरानी किरणों ने नया सवेरा पाया
उलटी दिशा में ढलते-ढलते सूरज निकल आया
नई धूप आ रही, खुल रही है खिड़कियां
बंद डाकखाने से कैसे मिल रही है चिट्ठियाँ

जो उलझी थी, वो गुथी अब खुलने वाली है
लगता है उम्मीदों के पाओं भारी है
उम्मीदों से बढ़कर किस्से अभी जारी है
लगता है उम्मीदों के पाओं भारी है
उम्मीदों से बढ़कर किस्से अभी जारी है

सुनी जेबें, खाली जीवन मोड़ नया ये आया
रखकर जो थे भूले आज वो सिक्का पाया
छिले हुऐ से घुटने, चुप-चुप हो कर बैठे थे
नहीं अभी, अब नहीं कभी चलना होगा ये कहते थे

आज अचानक दोड़ने की तैयारी है
लगता है उम्मीदों के पाओं भारी है
उम्मीदों से बढ़कर किस्से अभी जारी है
लगता है उम्मीदों के पाओं भारी है
उम्मीदों से बढ़कर किस्से अभी...



Credits
Writer(s): Rachita Arora, Neeraj Pandey
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