Subah Ki Garmi

सुबह की गर्मी, रातों की सर्दी
शाम सुलझाएगी
जूझे लहरों से, ढूँढे रस्ता यूँ
नाव घर जाएगी

धीमे से कहती फ़िज़ा
"कल होगा ये नया कल से"

सुबह की गर्मी, रातों की सर्दी
शाम सुलझाएगी

माँझी की लौ खोजे सिरा सहमे हुए
बैरी जो बने कोई अधरपान करे
धीमे से कहती फ़िज़ा
"कल होगा ये नया कल से"

सुबह की गर्मी, रातों की सर्दी
शाम सुलझाएगी
जूझे लहरों से, ढूँढे रस्ता यूँ
नाव घर जाएगी



Credits
Writer(s): Siddhant Kaushal, Darshan Umang
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