Zameen Par

ज़मीं पर किस-क़दर पहरे हुए हैं
ज़मीं पर किस-क़दर पहरे हुए हैं
परिंदे अर्श पर ठहरे हुए हैं
परिंदे अर्श पर ठहरे हुए हैं

ज़मीं पर किस-क़दर पहरे हुए हैं
ज़मीं पर किस-क़दर पहरे हुए हैं

बस इस धुन में कि गहरा हो ताल्लुक़
बस इस धुन में कि गहरा हो ताल्लुक़
हमारा फ़ासले गहरे हुए हैं
हमारा फ़ासले गहरे हुए हैं

ज़मीं पर किस-क़दर पहरे हुए हैं
ज़मीं पर किस-क़दर पहरे हुए हैं

नज़र आते नहीं अब रास्ते भी
नज़र आते नहीं अब रास्ते भी
घने कोहरे में सब ठहरे हुए हैं
घने कोहरे में सब ठहरे हुए हैं

ज़मीं पर किस-क़दर पहरे हुए हैं
ज़मीं पर किस-क़दर पहरे हुए हैं

करें इंसाफ़ की उम्मीद किससे?
करें इंसाफ़ की उम्मीद किससे?
यहाँ मुंसिफ़ सभी बहरे हुए हैं
यहाँ मुंसिफ़ सभी बहरे हुए हैं

ज़मीं पर किस-क़दर पहरे हुए हैं
ज़मीं पर किस-क़दर पहरे हुए हैं



Credits
Writer(s): Ahsan Ahmed, Pawan Kumar
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