Sapnon Ko Ginte Ginte

सपनों को गिनते-गिनते सुबह जो हो गई
अपने ही साए में ढूँढूँ छैयाँ सपने देखने

हो, सपनों को गिनते-गिनते सुबह जो हो गई
अपने ही साए में ढूँढूँ छैयाँ सपने देखने

सूरज की तपिश में मेरी चाँदनी खो गई
पल भर की भी ना छुट्टी थोड़ा पीछे मुड़ के देखने
हो, सपनों को गिनते-गिनते सुबह जो हो गई

हो, अपना-अपना मीठा सपना
सतरंगी के नीचे दफ़ना
हो, अपना-अपना मीठा सपना
सतरंगी के नीचे दफ़ना

है पड़ा दिन भर वो देखे
नन्हे कँधों की कमान
है बोझल-बोझल आसमाँ
पीठ ही टूटी, किस्मत रूठी
चूहों की इस race में

सपनों को गिनते-गिनते सुबह जो हो गई
अपने ही साए में ढूँढूँ छैयाँ सपने देखने



Credits
Writer(s): Amole Gupte, Hitesh Sonik
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