Sapne Sajakar

सपने सजाकर, अपना बनाकर
अपनों ने धोखा दिया
कैसे कहें के, हमको हमारे सपनों ने धोखा दिया
सपने सजाकर...

माँगी थी हमने चाहत की ख़ुशियाँ
रुसवाई हमको मिली
दिल को मिले ग़म, आँखों को आँसू
तनहाई हमको मिली

उसपे वफ़ा ने हमको वफ़ा का
ईनाम कैसा दिया

सपने सजाकर, अपना बनाकर
अपनों ने धोखा दिया
सपने सजाकर...

शिकवा नहीं है कोई किसी से
कोई शिकायत नहीं
क्यूँ जी रहे हैं जब कोई हमको
जीने की चाहत नहीं

दिल बुझ गया है तो क्यूँ जल रहा है
ये ज़िंदगी का दीया?

सपने सजाकर, अपना बनाकर
अपनों ने धोखा दिया
कैसे कहें के, हमको हमारे सपनों ने धोखा दिया
सपने सजाकर...



Credits
Writer(s): Jatin Pandit, Lalitraj Pandit, Mahendra Dehlvi
Lyrics powered by www.musixmatch.com

Link