Aise Kyun - Ghazal Version

ऐसे क्यों कुछ तो लिखती हूं
लिख के मिटाती हूं मैं रात भर
ऐसे क्यों बाते खुद की ही
खुद से छुपाती हूं मैं आज कल

पर ये सब सोचना
दिल को यूं खोलना
सब कुछ कह कर ही सब को बताना
जरूरी है क्या?
ऐसे क्यों

ऐसे क्यों
उसके होठों पे
अच्छा लगता है मेरा नाम
ऐसे क्यों
कुछ भी बोले वो
मन मैं घुलता है ज़फरां
गिरता है गुलमोहर
ख़्वाबों मैं रात भर
ऐसे ख़्वाबों से बाहर निकलना
ज़रूरी है क्या?

ऐसे क्यों
हां क्यों हां क्यों
वो कुछ बोले ना ऐसे क्यों
हां क्यों हां क्यों
वो कुछ बोले ना

अक्सर तुमसे मिलकर मुझको
घर सा लगता है
फिर क्यों दिल ही दिल में कोई
डर सा लगता है

अक्सर तुमसे मिलकर मुझको
घर सा लगता है
फिर क्यों दिल ही दिल में कोई
डर सा लगता है

बीता जो वाक्या
सोचू मैं क्यों भला
बीती बातों से दिल को दुखाना
ज़रूरी है क्या?

ऐसे क्यों
हां क्यों हां क्यों
वो कुछ बोले ना
ऐसे क्यों
हां क्यों हां क्यों
वो कुछ बोले ना



Credits
Writer(s): Raj Shekhar, Anurag Saikia
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