Khud Se Riha

मेरे आँसुओं में दर्द तेरा छुप-छुप के यूँ बहता है
क़तरा-क़तरा मेरे सीने का हर रोज़ ऐसे जलता है

ये मर्ज़ कैसा जो बेशुमार ज़ुल्म करता है मुझ पे?
ये कर्ज़ कैसा जो है चढ़ा इतना बेहिसाब मुझ पे?
ये कैसी तड़प है, या मेरे मौला?

कर दे मुझ को ख़ुद से रिहा
कर दे मुझ को ख़ुद से रिहा
कर दे मुझ को ख़ुद से रिहा
कर दे मुझ को ख़ुद से रिहा

मेरी रूह जल रही आग में
और जिस्म छलनी सा हो रहा
इस दर्द में ना चीख़ है
ना कोई पुकार ये सुन रहा

कर दे मुझ को ख़ुद से रिहा
कर दे मुझ को ख़ुद से रिहा
कर दे मुझ को ख़ुद से रिहा
कर दे मुझ को ख़ुद से रिहा

दो टुकड़े कर डाले तूने मोहब्बत के
एक हिस्सा मेरे नाम का आज दफ़न कर दिया
उधार थीं वो दुआएँ, जो पढ़ीं तेरी हिफ़ाज़त में
हर पन्ने से लेकिन तूने आज मुझे मिटा दिया

ये दर्द कैसा जो एक तरफ़ा दर्द देता है मुझ को?
ये फ़ख़्र कैसा जो आईने से देख रहा है मुझ को?
ये कैसी घुटन है, या मेरे मौला?

कर दे मुझ को ख़ुद से रिहा
कर दे मुझ को ख़ुद से रिहा
कर दे मुझ को ख़ुद से रिहा
कर दे मुझ को ख़ुद से रिहा

मेरी रूह जल रही आग में
और जिस्म छलनी सा हो रहा
इस दर्द में ना चीख़ है
ना कोई पुकार ये सुन रहा

कर दे मुझ को ख़ुद से रिहा
कर दे मुझ को ख़ुद से रिहा
कर दे मुझ को ख़ुद से रिहा
कर दे मुझ को ख़ुद से रिहा



Credits
Writer(s): Prateek Gandhi
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