Sahi Galat - From Drishyam 2

तू जहाँ से देखता है, मैं ग़लत हूँ, तू सही
देख मेरी नज़रों से, ग़लत, मैं कुछ ग़लत नहीं
करना है जो करके ही रहूँगा मैंने तय किया
ग़लत को भी सही तरह से करने का निश्चय किया

लगता है तुझे कि जुर्म का हूँ ज़िम्मेदार मैं
जब सबूत ही नहीं तो कैसे गुनहगार मैं?
पूरे होश और हवास में किया जो है किया
ग़लत को ही सही तरह से करने का निश्चय किया

तीर की तरह चला के अपने हर उपाय को
मेरे हर क़दम के आड़े आने वाले न्याय को
साम, दाम, दण्ड, भेद से भी मैंने जय किया
ग़लत को भी सही तरह से करने का निश्चय किया

समझ ना ख़ुद को मुझसे तेज़, तेरी भूल है
सियार जैसी होशियारी, ये फ़िज़ूल है
तेरा ख़याल, ठेकेदार है तू वक़्त का
बदल के रहता है, ये वक़्त का उसूल है

हरकतों पे कब तलक मेरी नज़र रखेगा तू?
करते-करते पहरेदारी एक दिन थकेगा तू
मैं मगर नहीं थकूँगा, फ़ैसला ये है किया
ग़लत को भी सही तरह से करने का निश्चय किया



Credits
Writer(s): Amitabh Bhattacharya, Devi Sri Prasad
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