Kuch Galat Hai

मुक़म्मल 'गर ये जहान है, फिर क्यूँ तलाश है?
साथ नहीं तू मेरे पर पास है
भटकूँ मैं रास्ते तेरे वास्ते
कैसी ये है कमी, क्यूँ आँखों में नमी?

तन्हा चलूँ तो लगे राहों पे काँटे हैं
धुँधला दिखे सब और सन्नाटे हैं
बाँटें अगर ग़म भी तो यूँ बस मुझे

आँखें ये खुली हैं पर ना मैं जागी, ना मैं सोई
गुमसुम दिल ना है खुश, ना मैं रोई
उम्मीद छोड़ दिल कहता दिलासे ना दे मुझे

तेरे-मेरे दरमियाँ कुछ ग़लत है
तेरे-मेरे दरमियाँ कुछ ग़लत है
क्या ये जलन है, क्यूँ ये चुभन है
कि तेरे-मेरे दरमियाँ कुछ ग़लत है

कह भी ना पाएँ
हम रह भी ना पाएँ तुम से दूर कहीं
सब है पता तुझे
क्या है ग़लत और क्या सही

वक़्त के हाथों में सब के ही धागे हैं
रोके यही, ये जो चाहे सब भागे हैं
जागे-जागे, भागे-भागे जीना हुआ मुश्किल अब मेरा

इतना पता है, तेरे संग-संग चलना है
मुश्किल राहें, संग गिरना, सँभलना
बदलना तू देना इरादा अब तेरा

क्यूँ तेरे-मेरे दरमियाँ कुछ ग़लत है?
क्यूँ तेरे-मेरे दरमियाँ कुछ ग़लत है?
क्या ये जलन है, क्यूँ ये चुभन है
क्यूँ तेरे-मेरे दरमियाँ कुछ ग़लत है



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Writer(s): Muzik Factory
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