Dost Ban Kar Bhi

नि सा रे गा नि पा रे रे गा मा पा धा गा मा रे गा रे सा

दोस्त बनकर भी नहीं साथ निभाने वाला,
वो ही अंदाज़ है ज़ालिम का ज़माने वाला. . .
दोस्त बनकर भी नहीं साथ निभाने वाला.

क्या कहें कितने मरासिम थे हमारे उससे,
वो जो है एक सख्स है मुंह फेर के जाने वाला. . .

क्या खबर थी जो मेरी जान में घुला रहता है,
है वही मुझको सरेदार पिलाने वाला. . .
दोस्त बनकर भी नहीं साथ निभाने वाला.

मैनें देखा है बहारों में चमन को जलते हुए,
है कोई ख्वाब की ताबीर बताने वाला. . .
दोस्त बनकर भी नहीं साथ निभाने वाला.

तुम तकल्लुफ को भी इख्लास समझते हो 'फ़राज',
दोस्त होता नहीं हर हाथ मिलाने वाला. . .
दोस्त बनकर भी नहीं साथ निभाने वाला.



Credits
Writer(s): Ghulam Ali
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