Nazdeekiyon Mein Bhi

नज़दीकियों में भी हम एक दूरी जी रहे हैं
रिश्तों की ये कैसी मजबूरी जी रहे हैं?
क्यूँ ज़िंदगी हम दोनों अधूरी जी रहे हैं?
रिश्तों की ये कैसी मजबूरी जी रहे हैं?
नज़दीकियों में भी हम एक दूरी जी रहे हैं

कब टूटेंगे बेरुख़ी के सिलसिले
चलो, ख़तम करें सारे शिकवे-गिले
कब टूटेंगे बेरुख़ी के सिलसिले
चलो, ख़तम करें सारे शिकवे-गिले

अपने से होके भी लगते पराए से
ऐसी भी क्या गुस्ताख़ी हुई?

क्यूँ चाँदनी में भी हम बेनूरी जी रहे हैं
रिश्तों की ये कैसी मजबूरी जी रहे हैं?

अब चैन मुझे कहीं आता नहीं
ऐसे हाल में अब जिया जाता नहीं
अब चैन मुझे कहीं आता नहीं
ऐसे हाल में अब जिया जाता नहीं

या तो मिलें खुल के, या फिर बिछड़ जाएँ
आओ, करें हम ये फ़ैसला

नाराज़गी में भी हम मंज़ूरी जी रहे हैं
रिश्तों की ये कैसी मजबूरी जी रहे हैं?
मजबूरी जी रहे हैं



Credits
Writer(s): Aslam Keyi, Sameer Anjaan
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