Jawaab

ये मुनासिब होगा हमको थाम लो कि
हम भी चाँद ढूँढने लगे हैं बादलों में
नाम शामिल हो चुका है अपना पागलों में

मतलबी इस दुनिया से किनारे कर लूँ
नाम तेरे सारी की सारी बहारें कर दूँ
बस चले तो तेरे हाथ में सितारे रख दूँ

शाम का रंग क्यूँ तेरे रंग में मिल रहा है?
दिल मेरा तेरे संग बैठ कर क्यूँ खिल रहा है?

है कोई जवाब, ओ, मेरे जनाब?
है कोई जवाब इस बात का?

आपके अपने ही हैं, हमको जानिए तो
इस शरम के लहजे को पहचानिए तो
बात बन जाएगी, बात मानिए तो

क्या है, कुछ नहीं ये चार दिन की ज़िंदगानी
तारों के हेर-फ़ेर की ये कारिस्तानी
ना कभी भी मिटने वाली लिख दें कहानी

आपकी आँखों में जो लिखा, मैं वो पढ़ रहा हूँ
बात वो होंठों पर कब आएगी, इंतज़ार कर रहा हूँ

है कोई जवाब, ओ, मेरे जनाब?
है कोई जवाब इस बात का?
बुनते रहें या ना बुनें ये ख़्वाब?
है कोई जवाब इस बात का?



Credits
Writer(s): Aditya Prateek Singh, Nikolaos Grivellas
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