Kahan Tak Yeh Man Ko Andhere

कहाँ तक ये मन को अंधेरे छलेंगे
उदासी भरे दिन कभी तो ढलेंगे

कहाँ तक ये मन को अंधेरे छलेंगे
उदासी भरे दिन कभी तो ढलेंगे

कभी सुख कभी दुख यही ज़िंदगी है
ये पतझड़ का मौसम घड़ी दो घड़ी है
ये पतझड़ का मौसम घड़ी दो घड़ी है

नये फूल कल फिर डगर में खिलेंगे
उदासी भरे दिन कभी तो ढलेंगे

भले तेज़ कितना हवा का हो झोंका
मगर अपने मन में, तू रख यह भरोसा
मगर अपने मान में तू रख यह भरोसा
जो बिछड़े सफ़र में तुझे फिर मिलेंगे
उदासी भरे दिन कभी तो ढलेंगे

कहे कोई कुछ भी मगर सच यही है
लहर प्यार की जो कहीं उठ रही हैं
लहर प्यार की जो कहीं उठ रही हैं

उसे एक दिन तो किनारे मिलेंगे
उदासी भरे दिन कभी तो ढलेंगे

कहाँ तक ये मान को अंधेरे छलेंगे
उदासी भरे दिन कभी तो ढालेंगे



Credits
Writer(s): Yogesh, Nagrath Rajesh Roshan
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