Ek Din Fursat

एक दिन फ़ुरसत ने थामे हाथ हमारे
ले गई उस डगर पे जहाँ रहती हैं बहारें
चल दिए हम भी घर से होके कुछ बेफ़िकर से
दिल था अपने भरोसे, हम थे दिल के सहारे

एक दिन फ़ुरसत ने थामे हाथ हमारे
ले गई उस डगर पे जहाँ रहती हैं बहारें

राह में मोड़ आया, रोशनी हो गई कम
राह में मोड़ आया, रोशनी हो गई कम
कुछ दिल घबराया कि कहाँ आ गए हम
आगे उस मोड़ के भी तो बहारें नहीं थी
आगे उस मोड़ के भी तो बहारें नहीं थी
भूली कुछ ख़्वाहिशें और ख़्वाब थे बस हमारे

एक दिन फ़ुरसत ने थामे हाथ हमारे
ले गई उस डगर पे जहाँ रहती हैं बहारें

बेवजह लग रही थी जब तलाश हमारी
बेवजह लग रही थी जब तलाश हमारी
एक ख़ुशबू उठी और रुत बदल गई सारी
सामने तो खड़े थे फैला के बाहें
सामने तो खड़े थे फैला के बाहें
जैसे हर दर्दे मेरा ख़ुद में लोगे समाए

पल बड़ा मुख़्तसर था, तेरे सीने पे सर था
यूँ लगा मर ना जाएँ इतनी ख़ुशियों के मारे

(एक दिन फ़ुरसत ने थामे हाथ हमारे)
(ले चली उस डगर पे जहाँ रहती हैं बहारें)
(एक दिन फ़ुरसत ने थामे हाथ हमारे)
(ले चली उस डगर पे जहाँ रहती हैं बहारें)



Credits
Writer(s): Mudassar Aziz
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