Mann Bhi Hai

मन भी है पिघला, पिघला
तन भी सुलगे जाए
कैसी है लगी ये अग्नि
सजना, तू ही बुझा

मन भी है पिघला, पिघला
तन भी सुलगे जाए
कैसी है लगी ये अग्नि
सजना, तू ही बुझा

तरसते दिन हैं, तड़पती रैना है
ना दिन में सुख है, ना रात चैना है
पल भर भी

पल-पल काँपे मन मोरा
तन भी कसमसाए
कैसी है दशा मोरी
सजना, तू ही बता

मैं तेरी धरती, तू मेरा अंबर है
मैं जिसको ओढ़ूँ
तू ही वो चादर है सपनों की

झुक-झुक जाएँ ये पलकें
तू जो पास आए
अब जो कथा है सारी
सजना, तू ही सुना



Credits
Writer(s): Javed Akhtar
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