Mahalakshami Chalisa

नमो मात कमलासनी, विनबहुँ बारम्बार।
हर लीजै मम सकल दुख, करहु न मात अबार ।।

पंकज श्वेत सुआसन मात, सुशोभित हो पद्मासन मोरे ।
श्वेत ही वस्त्र विराजत है तन, श्वेत ही श्वेत विभूषण भारे ।।
सोहत है शिर छत्र विशाल, सुमुक्तन माल गले बीच डारे ।
"गोविन्द" की यह आस, महालक्ष्मी जु करो दुख दूर हमारे ।। १।।

कुञ्चित है अलके झलके, अति कानन कुण्डल शोभित भारे ।
है भृकुटि शुचि बिन्दु सुभाल, बने नयनाम्बुज है छवि वारे ।।
चार भुजाएँ विराजत मात, सराजत नीरज है कर प्यारे ।
"गोविन्द" की यह आस, महालक्ष्मी जु करो दुख दूर हमारे ।।२।।

फैल रही चहुँ ओर छटा तब, तीनहुं लोक भये उजियारे ।
देव-ऋषि-मुनि ध्यान धरे, गुणगान करे नित मात तिहारे ।।
कीर्ति अपार न पावत पार, थके यश गायक वेद बिचारे ।
"गोविन्द" की यह आस, महालक्ष्मी जु करो दुख दूर हमारे ।।३।।

टेर सुनि तुम दीनन की, भवसागर से झट पार उतारे ।
हो जगपाल कृपाल बड़ी, निज भक्तन के तुम काज संवारे ।।
छाय रहो यश मात तुम्हार, महापरताप जहां बीच सारे ।
"गोविन्द" की यह आस, महालक्ष्मी जु करो दुख दूर हमारे ।।४।।

जै सुखकारनी कष्टनिवारनी, मात मुझे अब देउ सहारे ।
आ मम पीर हरो तन का, जन जानी करो अब मोहि सुखारे ।।
ध्यान धरूँ उर में निशिवासर, नाम सदा तब मात उचारे ।
"गोविन्द" की यह आस, महालक्ष्मी जु करो दुख दूर हमारे ।।५।।

रावहि रंक करे पलमें, तुम रंक सिंहासन मोहि बिठारे ।
मानिन मानहुँ मानहीं छारी, महादुख दीनन केर निवारे ।।
कौन बखान करे जगमें यश, शारद शेष महेशहू हारे ।
"गोविन्द" की यह आस, महालक्ष्मी जु करो दुख दूर हमारे ।।६।।

चाहत मात तुम्हें जग में, सब शीश नवाय रहे तब द्वारे ।
पूरण आश करो तिनकी, पलमें तुम दारुण दुख बिदारे ।।
होऊ सहाय दया करि बेगि, खड़ा कर जोरहि दास पुकारे ।
"गोविन्द" की यह आस, महालक्ष्मी जु करो दुख दूर हमारे ।।७।।

ध्यावत मात तुम्हें हर बार, खड़ा तव सेवक शाम सकारे ।
आवहु बेगि करो न अबार, पुकार कहूं करिये दुख न्यारे ।।
देहु कृपा करी ये वरदान, सदा सुख से अब होय गुजारे ।
"गोविन्द" की यह आस, महालक्ष्मी जु करो दुख दूर हमारे ।।८।।

अष्टक श्री महालक्ष्मी पढै सदा जो कोय ।
निशदिन इस संसार में, लहै अमित फल होय ।।



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