Bhar Do Jholi Meri Ya Mohammad
क़व्वाली
(भर दो झोली मेरी या मोहम्मद लौटकर मैं न जाऊँगा खाली)
शहे-मदीना सुनो, इल्तिजा खुदा के लिए
करम हो मुझ पे हबीबे-खुदा, खुदा के लिए
हुज़ूर, गुंचा-ए-उम्मीद अब तो खिल जाए
तुम्हारे दर का सवाली हूँ, तो भीक मिल जाए
भर दो झोली मेरी या मोहम्मद
लौटकर मैं न जाऊँगा खाली
तुम्हारे आस्ताने से ज़माना क्या नहीं पाता
कोई भी दर से खाली मांगने वाला नहीं जाता
भर दो झोली मेरी सरकारे-मदीना
भर दो झोली मेरी ताजदारे-मदीना
लौटकर मैं न जाऊँगा खाली
तुम ज़माने के मुख्तार हो या नबी
बेकसों के मददगार हो या नबी
सब की सुनते हो अपने हो या गैर हो
तुम गरीबों के ग़मख्वार हो या नबी
भर दो झोली मेरी सरकारे-मदीना
भर दो झोली मेरी ताजदारे-मदीना
लौटकर मैं न जाऊँगा खाली
हम है रंजो-मुसीबत के मारे हुए
सख्त मुश्किल में है ग़म से हारे हुए
या नबी कुछ खुदारा हमें भीक दो
दर पे आयेहै झोली पसारे हुए
भर दो झोली मेरी सरकारे-मदीना
भर दो झोली मेरी ताजदारे-मदीना
लौटकर मैं न जाऊँगा खाली
है मुखालिफ ज़माना किधर जाए हम
हालते-बेकसी किसको दिखलाए हम
हम तुम्हारे भिकारी है या मुस्तफा
किसके आगे भला हाथ फैलाए हम
भर दो झोली मेरी सरकारे-मदीना
भर दो झोली मेरी ताजदारे-मदीना
लौटकर मैं न जाऊँगा खाली
कुछ नवासों का सदका अता हो
दर पे आया हूँ बनकर सवाली
हक से पायी वो शाने-करीमी
मरहबा दोनों आलम के वाली
उसकी किस्मत का चमका सितारा
जिसपे नज़रें-करम तुमने डाली
ज़िंदगी बख्श दी बंदगी को
आबरू दीने-हक की बचा ली
वो मुहम्मद का प्यारा नवासा
जिसने सजदे में गर्दन कटा ली
जो इब्ने-मुर्तजा ने किया काम खूब है
कुर्बानी-ए-हुसैन का अंजाम खूब है
कुर्बान हो के फ़ातेमा ज़हरा के चैन ने
दीन-ए-खुदा की शान बढाई हुसैन ने
बख्शी है जिसने मज़हब-ए-इस्लाम को हयात
कितनी अज़ीम हज़रत-ए-शब्बीर की है ज़ात
मैदान-ए-कर्बला में शहे-खुश खिसाल ने
सजदे में सर कटा के मुहम्मद के लाल ने
ज़िन्दगी बख्श दी बंदगी को
आबरू दीन-ए-हक़ की बचा ली
वो मुहम्मद का प्यारा नवासा
जिसने सजदे में गर्दन कटा ली
हश्र में उनको देखेंगे जिस दम
उम्मती ये कहेंगे ख़ुशी से
आ रहे है वो देखो मुहम्मद
जिनके काँधे पे कम्बली है काली
महशर के रोज़ पेश-ए-खुदा होंगे जिस घडी
होगी गुनहगारों में किस दर्जा बेकली
आते हुए नबी को जो देखेंगे उम्मती
एक दुसरे से सब ये कहेंगे ख़ुशी ख़ुशी
आ रहे है वो देखो मुहम्मद
जिनके काँधे पे कम्बली है काली
सर-ए-महशर गुनहगारों से पुर्सिश जिस घडी होगी
यकीनन हर बशर को अपनी बख्शीस की पड़ी होगी
सभी को आस उस दिन कम्बली वाले से लगी होगी
कि ऐसे में मुहम्मद की सवारी आ रही होगी
पुकारेगा ज़माना उस घडी दुःख दर्द के मारों
न घबराओ गुनहगारों, न घबराओ गुनहगारों
आ रहे है वो देखो मुहम्मद
जिनके काँधे पे कम्बली है काली
आशिक-ए-मुस्तफा की अज़ां में
अल्ला-अल्लाह कितना असर था
सच्चा ये वाकया है अज़ाने-बिलाल का
एक दिन रसूले-पाक से लोगों ने यूँ कहा
या मुस्तफा अज़ान ग़लत देते है बिलाल
कहिये हुज़ूर आपका इस में है क्या खयाल
फरमाया मुस्तफा ने ये सच है तो देखिये
वक़्त-ए-सहर की आज अज़ां और कोई दे
हज़रत बिलाल ने जो अज़ान-ए-सहर न दी
कुदरत खुदा की देखो न मुतलक सहर हुई
आये नबी के पास कुछ असहाब-ए-बासफा
की अर्ज़ मुस्तफा से ऐ शाह-ए-अम्बिया
है क्या सबब सहर न हुई आज मुस्तफा
जिब्रील लाये ऐसे में पैगाम-ए-किब्लिया
पहले तो मुस्तफा को अदब से किया सलाम
बाद अस्सलाम उनको खुदा का दिया पयाम
यूँ जिब्राइल ने कहा खैर-उल-अनाम से
अल्लाह को है प्यार तुम्हारे गुलाम से
फरमा रहा है आपसे ये रब्ब-ए-ज़ुल्जलाल
होगी न सुबह देंगे न जबतक अज़ां बिलाल
आशिके-मुस्तफा की अज़ान में
अल्ला-अल्लाह कितना असर था
अर्श वाले भी सुनते थे जिसको,
क्या अज़ां थी अज़ान-ए-बिलाली
काश, 'पुरनम' दयार-ए-नबी में
जीते जी हो बुलावा किसी दिन
हाल-ए-ग़म मुस्तफा को सुनाऊं
थाम कर उनके रौज़े की जाली
भर दो झोली मेरी या मोहम्मद
लौटकर मैं न जाऊँगा खाली ...शायर पुरनम अलाहाबादी.
(भर दो झोली मेरी या मोहम्मद लौटकर मैं न जाऊँगा खाली)
शहे-मदीना सुनो, इल्तिजा खुदा के लिए
करम हो मुझ पे हबीबे-खुदा, खुदा के लिए
हुज़ूर, गुंचा-ए-उम्मीद अब तो खिल जाए
तुम्हारे दर का सवाली हूँ, तो भीक मिल जाए
भर दो झोली मेरी या मोहम्मद
लौटकर मैं न जाऊँगा खाली
तुम्हारे आस्ताने से ज़माना क्या नहीं पाता
कोई भी दर से खाली मांगने वाला नहीं जाता
भर दो झोली मेरी सरकारे-मदीना
भर दो झोली मेरी ताजदारे-मदीना
लौटकर मैं न जाऊँगा खाली
तुम ज़माने के मुख्तार हो या नबी
बेकसों के मददगार हो या नबी
सब की सुनते हो अपने हो या गैर हो
तुम गरीबों के ग़मख्वार हो या नबी
भर दो झोली मेरी सरकारे-मदीना
भर दो झोली मेरी ताजदारे-मदीना
लौटकर मैं न जाऊँगा खाली
हम है रंजो-मुसीबत के मारे हुए
सख्त मुश्किल में है ग़म से हारे हुए
या नबी कुछ खुदारा हमें भीक दो
दर पे आयेहै झोली पसारे हुए
भर दो झोली मेरी सरकारे-मदीना
भर दो झोली मेरी ताजदारे-मदीना
लौटकर मैं न जाऊँगा खाली
है मुखालिफ ज़माना किधर जाए हम
हालते-बेकसी किसको दिखलाए हम
हम तुम्हारे भिकारी है या मुस्तफा
किसके आगे भला हाथ फैलाए हम
भर दो झोली मेरी सरकारे-मदीना
भर दो झोली मेरी ताजदारे-मदीना
लौटकर मैं न जाऊँगा खाली
कुछ नवासों का सदका अता हो
दर पे आया हूँ बनकर सवाली
हक से पायी वो शाने-करीमी
मरहबा दोनों आलम के वाली
उसकी किस्मत का चमका सितारा
जिसपे नज़रें-करम तुमने डाली
ज़िंदगी बख्श दी बंदगी को
आबरू दीने-हक की बचा ली
वो मुहम्मद का प्यारा नवासा
जिसने सजदे में गर्दन कटा ली
जो इब्ने-मुर्तजा ने किया काम खूब है
कुर्बानी-ए-हुसैन का अंजाम खूब है
कुर्बान हो के फ़ातेमा ज़हरा के चैन ने
दीन-ए-खुदा की शान बढाई हुसैन ने
बख्शी है जिसने मज़हब-ए-इस्लाम को हयात
कितनी अज़ीम हज़रत-ए-शब्बीर की है ज़ात
मैदान-ए-कर्बला में शहे-खुश खिसाल ने
सजदे में सर कटा के मुहम्मद के लाल ने
ज़िन्दगी बख्श दी बंदगी को
आबरू दीन-ए-हक़ की बचा ली
वो मुहम्मद का प्यारा नवासा
जिसने सजदे में गर्दन कटा ली
हश्र में उनको देखेंगे जिस दम
उम्मती ये कहेंगे ख़ुशी से
आ रहे है वो देखो मुहम्मद
जिनके काँधे पे कम्बली है काली
महशर के रोज़ पेश-ए-खुदा होंगे जिस घडी
होगी गुनहगारों में किस दर्जा बेकली
आते हुए नबी को जो देखेंगे उम्मती
एक दुसरे से सब ये कहेंगे ख़ुशी ख़ुशी
आ रहे है वो देखो मुहम्मद
जिनके काँधे पे कम्बली है काली
सर-ए-महशर गुनहगारों से पुर्सिश जिस घडी होगी
यकीनन हर बशर को अपनी बख्शीस की पड़ी होगी
सभी को आस उस दिन कम्बली वाले से लगी होगी
कि ऐसे में मुहम्मद की सवारी आ रही होगी
पुकारेगा ज़माना उस घडी दुःख दर्द के मारों
न घबराओ गुनहगारों, न घबराओ गुनहगारों
आ रहे है वो देखो मुहम्मद
जिनके काँधे पे कम्बली है काली
आशिक-ए-मुस्तफा की अज़ां में
अल्ला-अल्लाह कितना असर था
सच्चा ये वाकया है अज़ाने-बिलाल का
एक दिन रसूले-पाक से लोगों ने यूँ कहा
या मुस्तफा अज़ान ग़लत देते है बिलाल
कहिये हुज़ूर आपका इस में है क्या खयाल
फरमाया मुस्तफा ने ये सच है तो देखिये
वक़्त-ए-सहर की आज अज़ां और कोई दे
हज़रत बिलाल ने जो अज़ान-ए-सहर न दी
कुदरत खुदा की देखो न मुतलक सहर हुई
आये नबी के पास कुछ असहाब-ए-बासफा
की अर्ज़ मुस्तफा से ऐ शाह-ए-अम्बिया
है क्या सबब सहर न हुई आज मुस्तफा
जिब्रील लाये ऐसे में पैगाम-ए-किब्लिया
पहले तो मुस्तफा को अदब से किया सलाम
बाद अस्सलाम उनको खुदा का दिया पयाम
यूँ जिब्राइल ने कहा खैर-उल-अनाम से
अल्लाह को है प्यार तुम्हारे गुलाम से
फरमा रहा है आपसे ये रब्ब-ए-ज़ुल्जलाल
होगी न सुबह देंगे न जबतक अज़ां बिलाल
आशिके-मुस्तफा की अज़ान में
अल्ला-अल्लाह कितना असर था
अर्श वाले भी सुनते थे जिसको,
क्या अज़ां थी अज़ान-ए-बिलाली
काश, 'पुरनम' दयार-ए-नबी में
जीते जी हो बुलावा किसी दिन
हाल-ए-ग़म मुस्तफा को सुनाऊं
थाम कर उनके रौज़े की जाली
भर दो झोली मेरी या मोहम्मद
लौटकर मैं न जाऊँगा खाली ...शायर पुरनम अलाहाबादी.
Credits
Writer(s): Sabri Haji Maqbool Ahmed
Lyrics powered by www.musixmatch.com
Link
Other Album Tracks
© 2024 All rights reserved. Rockol.com S.r.l. Website image policy
Rockol
- Rockol only uses images and photos made available for promotional purposes (“for press use”) by record companies, artist managements and p.r. agencies.
- Said images are used to exert a right to report and a finality of the criticism, in a degraded mode compliant to copyright laws, and exclusively inclosed in our own informative content.
- Only non-exclusive images addressed to newspaper use and, in general, copyright-free are accepted.
- Live photos are published when licensed by photographers whose copyright is quoted.
- Rockol is available to pay the right holder a fair fee should a published image’s author be unknown at the time of publishing.
Feedback
Please immediately report the presence of images possibly not compliant with the above cases so as to quickly verify an improper use: where confirmed, we would immediately proceed to their removal.