Parchhai

कहने को तो मैं जी रहा हूँ
धड़कन से सांसें ही जुदा है
मंज़िल तक पहुँचा तो ये जाना
रस्ते में खुदको खो दिया है

खुद की क्या पहचान दूँ मैं
खुद से ही अनजान हूँ मैं
मैं जीता हूँ मगर
अब ज़िंदा ही नहीं
जो सोचा वो समझा ही नहीं

रूठे ख्यालों में कैसी तनहाई है
ना जानू मैं हूँ या मेरी परछाई है
रूठे ख्यालों में कैसी तनहाई है
ना जानू मैं हूँ या मेरी परछाई है

सूनी-सूनी सी रातों में
खाली पन मुझको खलता है
सब हैं मगर कुछ भी नहीं
तन्हा-तन्हा से इस दिल में

कोई काँटा क्यूँ चुभता है?
आँखों में हर पल है नमी
खुद की क्या पेहचान दूँ मैं
खुद से ही अनजान हूँ मैं

मैं जीता हूँ मगर
अब ज़िंदा ही नहीं
जो सोचा वो समझा ही नहीं

रूठे ख्यालों में कैसी तनहाई है
ना जानू मैं हूँ या मेरी परछाई है
रूठे ख्यालों में कैसी तनहाई है
ना जानू मैं हूँ या मेरी परछाई है



Credits
Writer(s): Palak Muchhal, Palash Muchhal
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