Sathio Sum Lo Zara Yeh Dastan

साथियों, सुन लो ज़रा ये दास्ताँ
आवाज़ दो, हो तुम कहाँ?
देखो आँखें खोल के हो रहा है क्या यहाँ
सुन लो ज़रा ये दास्ताँ
आवाज़ दो, हो तुम कहाँ?

एक माटी से बने हम, सबका एक भगवान है
वो भी इक इंसान है, ये भी इक इंसान है
उस तरफ़ ऊँचा महल है, इस तरफ़ है झोपड़ी
"फ़र्क़ इतना किसलिए?" इंसानियत सोचे खड़ी

उस तरफ़ भूख और निराशा का निशाँ तक भी नहीं
इस तरफ़ इक सर्द चूल्हे में धुआँ तक भी नहीं
उस तरफ़ रंगीं शराबी मेज़ पर आने को है
इस तरफ़ पीने को आँसू, ठोकरें खाने को हैं

काम ना भगवान का है और ना शैतान का
काम है इंसान का, इंसान का, इंसान का
हमने दुनिया को बिगाड़ा, हम बनाएँगे इसे
हमने इंसाँ को गिराया, हम उठाएँगे इसे
हमने इंसाँ को गिराया, हम उठाएँगे इसे



Credits
Writer(s): Qamar Jalalabadi, Nitin Mangesh
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