Kap Kap (From "Prague")

Kap, kap, kap पिघले ये बर्फ़ की नदी
लम्हें उतरे इसमें जैसे पिघले पानी
लहरों मे तरंगें, पैरों मे गीली मिट्टी
ठंडे से कंधों पे रखी याद की अंगीठी

Kap, kap, kap पिघले ये बर्फ़ की नदी
लम्हें उतरे इसमें जैसे पिघले पानी
सब बहते रहे हैं, कोई देखेगा ना तुझे
जाएँ सारे भाड़ में, वो देखे तो बात है

तब, तब, तब जागेगी बर्फ़ की नदी
रातों के हाथों में लिखी कहानी
है थोड़ा डरा सा, वो आँखें चुरा रहा
Table पे अकेले वो उँगली घुमा रहा

जब, जब, जब उबलेगी बर्फ़ की नदी
आँखों में सँभाले रखना शैतानी
उड़ती सी ख़बर है, कुछ होगा अब यहाँ
छत पे भी है जल रही धीमी सी आग एक

काँपते से होंठ से पीना रात ज़रा-ज़रा
पिएगी तू, मगर नशा उसको होगा तेरा
हौले से फिर उठ के दरवाज़ा सटाना है ना

सुबह हो तो साँसें बजें ना ज़ोर से
जब चोरी से वो देखे तुझे आधी नींद में

अब, अब, अब चुप्पी सी बर्फ़ की नदी
उस पे तू, वो और ख़ाली नाव का सफ़र
उस पे तू, वो और ख़ाली नाव का सफ़र
Mmm, उस पे तू, वो और ख़ाली नाव का सफ़र



Credits
Writer(s): Atif Afzal, Daniella Fotju
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