Pran Snehi Jeevan Dhan

ओ, जोगी रे, जोगी रे
रुक तनिक, सुनता जा बिरह की व्यथा

प्राण सनेही जीवन धन मोहे तज के जइयो ना
ऐसे तज के जइयो ना
प्राण सनेही जीवन धन मोहे तज के जइयो ना
ऐसे तज के जइयो ना

ओ, जोगी रे
जोगी, अपनी विष्णु प्रिया को...
जोगी, अपनी विष्णु प्रिया को यूँ रुलइयो ना

तज के जइयो ना
ऐसे तज के जइयो ना
ছেড়ে যেও না
এমন করে ছেড়ে যেও না

वो मंडप और बेदी
वो अग्नि की साक्षी में फेरे
वो मंडप और बेदी
वो अग्नि की साक्षी में फेरे

सप्तपदी के सात वचन क्यूँ भूला? साजन मेरे
...क्यूँ भूला? साजन मेरे

जोगी रे
शुभ दृष्टि की बेला में जो मिले...
शुभ दृष्टि की बेला में जो मिले वो नैन चुरइयो ना

तज के जइयो ना
এমন করে ছেড়ে যেও না
प्राण सनाही जीवन धन मोहे तज के जइयो ना
এমন করে ছেড়ে যেও না

मुखड़ा मोड़ गृहस्थाश्रम से
बनके चला तू जोगी
मुखड़ा मोड़ गृहस्थाश्रम से
बनके चला तू जोगी

जब तक मैं बँधन में रहूँगी
मुक्ति कैसे होगी तेरी?
मुक्ति कैसे होगी?

जोगी रे
धर्म-कर्म की सहभागिनी को...
धर्म-कर्म की सहभागिनी को यूँ बिसरइयो ना

तज के जइयो ना
ऐसे तज के जइयो ना
प्राण सनाही जीवन धन मोहे तज के जइयो ना
ऐसे तज के जइयो ना

ओ, जोगी रे, जोगी रे
रुक तनिक, सुनता जा बिरह की व्यथा



Credits
Writer(s): Ravindra Jain, Gufi Paintal
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