Zinda Hoon Is Tarah Ke (From "Aag")

ज़िंदा हूँ इस तरह कि ग़म-ए-ज़िन्दगी नहीं
जलता हुआ दिया हूँ मगर रोशनी नहीं
ज़िन्दा हूँ ...

वो मुद्दतें हुईं हैं किसीसे जुदा हुए
लेकिन ये दिल कि आग अभी तक बुझी नहीं
ज़िन्दा हूँ ...

आने को आ चुका था किनारा भी सामने
खुद उसके पास ही मेरी नय्या गई नहीं
ज़िन्दा हूँ ...

होंठों के पास आए हँसी, क्या मज़ाल है
दिल का मुआमला है कोई दिल्लगी नहीं
ज़िन्दा हूँ ...

ये चाँद ये हवा ये फ़ज़ा, सब हैं माद्मा
जब तू नहीं तो इन में कोई दिलकशी नहीं
ज़िन्दा हूँ ...



Credits
Writer(s): Behzad Lakhnavi, Ram Ganguly
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